
कौशल कंवल जब से चीन आए थे, मजे ही मजे थे।
कितना परेशान होते थे वह अपने देश में। कहने को तो मातृभूमि थी पर जब से फैक्ट्री संभाली थी, परेशान ही रहते थे।
होते भी क्यों न, उनके सारे के सारे दोस्त विदेशों में ही तो सैटल हो गए थे। लगभग सभी सफल व्यवसाई थे। वहां की इतनी तारीफें करते रहते कि अपने देश में हर ओर गंदगी और हर चीज में कमियां ही कमियां नजर आने लग गईं थीं।
कहां उच्च कोटि के शहर और कहां अपने देश के। गंदगी केवल शहरों में ही होती तो शायद सह लेते। पर अब तो हर जगह में ही कमी दिखती थी। फिर चाहे वह सरकारी विभाग हों या फिर आम जनमानस।
फिर कितनी ही जिद्द करने के बाद पापा ने चीन जा के लिए सैटल होने के लिए हामी भर दी थी। लेकिन इकलौते बेटे के जाने के बाद और बनी बनाई फैक्ट्री उजड़ने के बाद सदमे से उनकी मृत्यु हो गई थी।
उनकी मृत्यु के बाद कौशल जी ने अपनी मां को अपने साथ ले जाने की बड़ी जिद्द की थी, पर मां ने भारी मन से न बोल दिया था।
चीन कितना सुंदर था, वहां के लोग कितने सयाने थे। इंडस्ट्रियल एरिया में उनके पहुंचते ही उस क्षेत्र विशेष के मेयर अपनी टीम के साथ उनका स्वागत करने पहुंच गए थे। कौशल जी कितने हैरान हो गए थे जब मेयर ने उन्हें होटल में बैठे बिठाए बिना कहीं भी जूते घिसे एक ही दिन में सारे विभागों के अधिकारियों से मिलवा दिया था और दूसरे ही दिन उन्हें फैक्टरी के लिए जमीन आवंटित कर दी गई थी। सारी की सारी सुविधाएं एक साथ इतनी जल्दी, यह तो अपने देश में संभव ही न था।
कर्मचारी और लेबर कितने कर्मठी थे, केवल त्योहारौं में ही छुट्टी लेते थे और ओवरटाईम भी खूब जम के करते थे। अब तो मौज ही लग गई थी।
धीरे-धीरे पूरा परिवार ही वहां सैटल हो गया था। मां के गुजर जाने के बाद अब अपने देश में बचा ही क्या था, तो सारी जमीनें जायदादें बेचकर वहीं विलासता पूर्वक ऐश में जिंदगी व्यतीत हो रही थी।
चूंकि अब बड़े बड़े व्यवसायियों और नेताओं से पार्टियों में मिलना जुलना होता ही रहता था तो अब साग सब्जी भी फीकी लगनी शुरू हो गई थी। अब तो धीरे धीरे सी फूड से लेकर लगभग सभी तरह के पशु पक्षियों के अनोखे स्वाद जिव्हा की स्वाद ग्रंथियों में रच बस से गए थे।
जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन, जैसा पिए पानी, वैसी बोले बानी।
अपना देश तो कुछ यूं बुरा सा लगने लगा था कि सोशल मीडिया पर भी देश प्रेम की बातें सुनकर मुंह बिचका लेते और बड़े गर्व से सबसे कहते…अरे जाओ…कहां चाईना और कहां इंडिया…सपने देखो…सात जन्मों में भी भारत कभी यहां का मुकाबला नहीं कर सकता।
यह बात और थी कि उनकी फैक्ट्री का सारा माल भारत में ही खपत होता था। फिर भी वह चाईना का गुणगान करते न थकते। वहां रहकर बड़े अरबपतियों में उनकी गिनती जो होने लगी थी।
इधर सालों से कुंभकरणीं नींद में मृत्यु शैया पर पड़े भारत ने अचानक ही मानो संजीवनी बूटी चख ली थी।
सरकार बदलते ही देश ने खड़े होकर अंगड़ाई ली और खुद पर जमीं धूल को झाड़ते हुए स्वयं को फिर से व्यवस्थित किया।
बुजुर्ग होता जा रहा भारत अब फिर से युवा हो चुका था। उसकी सुंदरता की चमक पूरे ग्लोब को प्रभावित कर रही थी। इधर भारत तेजी से विकसित हो रहा था और उधर चाईना की सांसें फूल रहीं थीं।
अरे अब भी समय है, लौट आ, मेरी बात मान, वह बहुत मक्कार देश है। वहाँ के लोग बड़े धूर्त हैं, न जाने कब क्या हो जाए, यहाँ बहुत कुछ बदल चुका है। घर वापसी पर तेरी कम्पनी को सरकार पूरी मदद करेगी…मामा जी ने लाख समझाया था पर कौशल जी की आंखों में तो शंघाई की चकाचौंध भरी हुई थी।
अब तो वह किसी रिश्तेदार को भी घास नहीं डालते थे और किसी का फोन आने पर अनमनी बातें करके उसे टाल देते थे।
आज कितनी बड़ी पार्टी दी थी उन्होंने शहर के सबसे मंहगे सैवन स्टार होटल में। शंघाई के लगभग सभी बड़े व्यवसाई और बड़े बड़े नेता मंत्री भी शामिल हुए थे। इतने बड़े प्रोजेक्ट हासिल करने की खुशी जो थी।
सभी ने खाने की कितनी तारीफ की थी, पर असली मजा तो चमगादड़ के खून से बनी वाईन में ही आया था, जब उसमें आग लगाकर फूंक मारकर सिप करके मंत्री जी ने पार्टी की शुरुआत की थी तो मेहमानों की जोरदार तालियों से समूचा टैरेस गूँज उठा था।
क्या बात है…जी एम लुई शुंग अभी तक क्यों नहीं पहुँचे, क्या हो गया? सर अभी-अभी खबर आई है कि वह आईसीयू में एडमिट हैं और केवल वही नहीं शहर का कोई भी आईसीयू खाली नहीं है, सभी तेजी से भर रहे हैं।
तभी सरकारी आदेश आया कि आप सभी तुरंत फैक्ट्री खाली करिए और अपने अपने घर जाइए। हमें फैक्ट्री सील करने का आदेश मिला है।
अरे यह क्या ड्राइवर…गाड़ी कैसे चला रहे हो…अरे अरे…संभाल कर चलो बेवकूफ!
अरे सर जरा सामने तो देखिए दूर-दूर तक लोग लड़खड़ा कर गिरते दिखाई दे रहे हैं।
अरे यह भगदड़ कैसी…यार जल्दी घर पहुंचाओ।
अरे सर देखा आपने, कैसे पुलिस वालों ने चार पाँच लोगों को गोली मार दी। आखिरी हो क्या रहा है कुछ समझ में नहीं आ रहा…सुबह तक तो सब ठीक था…इतनी जल्दी यह क्या हो गया।
बाहर निकलो! जोरदार कड़क आवाज सुनते ही कौशल जी का कलेजा कांप उठा। पुलिस ने ड्राइवर का टेंपरेचर देखते ही उसे बाहर खींच कर गोली मार दी। अरे अरे यह क्या कर रहे हो, मुझे जानते नहीं मैं कौन हूं? सॉरी सर आप गाड़ी लेकर जल्दी घर जाईए और हां अपना पहचान पत्र गले में लटका लीजिए…नहीं तो आगे कोई और आपको न पहचान पाया और आपको बुखार निकला तो तुरंत गोली मार देगा।
लगभग कांपते हुए गाड़ी चलाते हुए कौशल जी तेजी से शहर के सबसे सुंदर इलाके में बने अपने विला में समां जाने को बेताब हो रहे थे।
गाड़ी थी कि चल ही नहीं रही थी, लहराई जा रही थी, मानो आज ही चलानी सीखी हो। इतने लोगों को सड़क पर बदहवास होकर गिरते और पुलिस की गोली से मरते उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था।
पूरे हफ्ते शहर में सन्नाटा पसरा रहा था। दिन में तो गोली चलने की आवाज आती ही रही थी। रात को भी मिलिट्री के जूतों की आवाजें भी गोलियों की आवाज के साथ सुनाई देतीं रहीं थीं। दहशत इतनी बढ़ गई थी कि खिड़कियों से झांकने की भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी।
आखिरकार पूरा जोर लगाने पर कौशल जी के एक विश्वासपात्र मंत्री ने धीरे से फोन पर बताया था कि एक खतरनाक वायरस बनाकर हम पूरी दुनिया को विश्व युद्ध के बिना ही जीतना चाहते थे। पर दुर्भाग्य से वह यहीं फैल गया और अब तक लाखों लोगों की जानें जा चुकी हैं। गरीबों, बूढ़ों, बीमारों और लाचारों को चुन चुन कर मारा जा रहा है, ताकि और इंफेक्शन न फैले।
धीरे धीरे चाईना की सच्चाई कौशल जी के सामने आने लगी पर तब तक उनका लगभग सत्तर प्रतिशत स्टाफ खतरनाक वायरस की लपेट में आकर प्राण गवां चुका था।
फैक्ट्री बंद हुए अब लगभग तीन महीने हो चुके थे। अरबों का नुकसान हो चुका था। शुरू के दिनों में कौशल जी ने हजारों नोटों को ऊपर वाले माले से सड़कों पर यह लिख कर फेंका था कि हमें रोटी दो, दवा दो, नहीं तो हम मर जाएंगे।
कितनी बड़ी त्रासदी थी, जिस देश की तारीफ करते न थकते थे, अब वहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। न ही ठीक से खाने को मिल रहा था और न ही दवाईयां।
अभी धीरे-धीरे हालात सुधरने शुरू हुए ही थे कि वहां के प्रशासन ने साफ बोल दिया…आप लोगों ने गलवान घाटी में हमारे ऊपर अटैक करके साठ सत्तर मिलिट्री वालों को मार दिया। अब हमसे कोई उम्मीद मत रखिएगा।
यह क्या हो गया था? साठ वर्षों के जीवन काल में कभी इतना परेशान नहीं होना पड़ा था, जितना इन छह महीनों में। दिमाग चकरघिन्नी बन कर रह गया था।
अरे यह क्या! सपने में नहीं सोचा था कि तृतीय विश्व युद्ध होगा। इधर अपने देश ने और उधर अमेरिका ने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर चाईना पर अटैक कर दिया था, जिसकी त्रासदी कौशल जी को झेलनी पड़ गई थी।
सरकार ने अपना असली रंग दिखा दिया था। उनके सारे अकाउंट सीज कर दिए गए थे। फैक्ट्री और सभी जमीनें जयदादें आपातकाल के नाम पर छीन लीं गईं थीं।
अब तक चाईना का युद्ध में बड़ा भारी नुकसान हो चुका था। उधर पूरा का पूरा चाईना मृत्यु शैया पर पड़ा एड़ियां रगड़ कर अंतिम सांसे ले रहा था और इधर कौशल जी…।
कांपते हाथों से बेटे का हाथ पकड़कर धीरे से बोल रहे थे वह। कुछ शब्द तो मुंह में ही फंस कर रह गए थे। ओठों ने फुसफुसा कर अपने प्यारे भारत देश लौट जाने का वचन मांगा था। अब था भी क्या यहां पर, सब कुछ तो युद्ध की भेंट चढ़ चुका था। सरकार कंगली हो चुकी थी। कौशल जी का सभी कुछ छीन कर युद्ध की अग्नि में झोंक दिया गया था। आज उनकी डबडबाई आंखों से बेबसी के आंसू अनवरत बहे जा रहे थे।
आज उनको वह पुराने दिन याद आ रहे थे। कितनी हरियाली थी उनके घर में भी और फैक्ट्री में भी। कितना बढ़िया शुद्ध शाकाहारी जीवन जीते थे और खुशियां फल बन कर उनके मम्मी पापा की हरी भरी बगिया में लटकीं रहतीं थीं। जब जी चाहता, लपक कर तोड़ते और खुश हो जाते।
परिवार की देश वापसी की हामी भरने पर कौशल जी को इतना संतोष हो गया कि अब जीते जी न सही पर मृत्योपरांत उनकी अस्थियां अपने देश की पतित पावन नदियों में बह कर शायद पवित्र हो जाएंगी और उनकी मातृभूमि की माटी उन्हें क्षमा कर देगी।
यदि यह लघुकथा पसंद आई हो तो कमेंट और शेयर जरूर करें, धन्यवाद जसविंदर सिंह, हिमाचल प्रदेश
❤️❤️
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Thanks
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Nicee
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Thanks
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Very nice
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Thanks
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Nicee
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Thanks
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Bahut achchi lucky .parh kar maja aaya.
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Thanks 😊
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Bahut achchi lucky .parh kar maja aaya.
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Thanks again 😊
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Bahut hi badiya kahani achha lga padkar 👍
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धन्यवाद 🙂
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Bohat hi achha likha hai 👌👌👌👌👌
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Thank you
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Bohat hi achha likha hai 👌👌👌👌👌
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Thanks
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Very nice
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Thanks
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Bahut khub
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Thank you very much
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mind blowing
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Thanks a lot
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Lakh lubhay mahal paray apna ghar fir apna ghar he. Aa ab lout chle…
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🙏🙏🙏
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🙏🙏🙏😊😊
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Bitye samay ki ghatnaon ko jeevant karti hui aap ki kahani……bohat sunder varnan👌🏻👌🏻💐💐💐💐💐
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Sadhuwad Didi 🙏🙏
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Beautiful
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Thanks
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Beautiful
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Thank you very much
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Bahut khoob
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Thanks 😊
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🙏👏
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