
चना भले ही सूखा था,
दुबला पतला बूढ़ा सा था,
झुर्रियों से था भरा हुआ,
छोटा पिचका नन्हा सा था,
पर फुर्ती में अव्वल था,
छिटक के दौड़ लगाता था,
ठोस था तन से और बदन से,
जोर बड़ा आवाज में था
पर कुछ पाने की चाहत थी,
इसीलिए वह खुश न था,
प्यास सताती थी सुख की,
जनम जनम का प्यासा था,
इक दिन खा के तरस किसी ने,
दिया उसे पानी में डाल,
पानी के बर्तन में डल के,
चने का मन था हुआ निहाल,
फूल फाल के हो गया कुप्पा,
गालें हो गईं लालमलाल,
इतना पानी मिलने पर भी,
प्यास नहीं बुझ पाती थी,
अतृप्त रहा था सुबहो तक,
तृप्ति कहां हो पाती थी,
और अधिक लालच में आ के,
हुआ चने का बुरा ही हाल,
रखा किसी ने आग पे बर्तन,
दिए मसाले ऊपर डाल
उबल आग पर बड़ी जोर से,
किया स्वयं से एक सवाल,
क्यों थोड़े पानी से ही,
काम नहीं चल पाया था,
रात रात भर सोख के पानी,
और क्यों मन ललचाया था,
न पड़ता इतना लालच में,
न पड़ता मुझपे यह जाल,
संग सदा मैं रहता सबके,
कभी न आता मेरा काल,
ओ बंधू ओ मित्र सुनो सब,
बुरा है लालच का जंजाल,
छोड़ो इसको सुख से जीओ,
भीतर बाहर रहो निहाल।
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Nice
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Thanks🙂
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क्या रचना रची है, कमाल कर दिया
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Lalach buri bala
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Ek nanhye se Chanye ki man ki vytha ka itna sunder varnan 👌🏼👌🏼👌🏼Kamaal hi kar diya 💐💐💐💐💐Kya baat kya baaaat Kyaaaaaaaaaa baat💕💕💕
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Thanxxxx 🙏🙏😊
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माखी गुड़ में गड़ि रही, पंख रही लपटाय। तारी पीटै सिर धुनै, लालच बुरी बलाय।
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लालच बुरी बलाय, काहे को तूं लपटाय…🙏
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BAHUT KHOOB HUME LALACH NHI KARNI CHAHIYE BHAGWAN JITNA DE USI MAIN KHUSH REHNA CHAHIYE
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🙏
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👌👌👍
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