
यूँ तो हल्का फुल्का,
दुबला पतला मैं धागा हूँ,
फिरकी पे लिपटा रहता,
खुद में सिमटा रहता हूँ,
दूकानों पर डिब्बों के भीतर,
खड़ा पड़ा रहता हूँ,
रंग अनेकोंनेक लिए,
चहुं ओर नजर आता हूँ,
सूती रेशमी टेरीकॉट,
नाइलॉन में दिख जाता हूँ,
हर कपड़े के भीतर दिखता,
सब कुछ ढंक जाता हूँ,
नींबू मिर्चा डाल गले,
नजरबट्टू बन जाता हूँ,
भरवां सब्जी के ऊपर बंध,
स्वाद बढ़ा जाता हूँ,
सुई हो हाथ में या मशीन में,
संग सदा रहता हूँ,
काम वफादारी से करता,
सब में बिंध जाता हूँ,
दिल से दिल के बीच पुली का,
काम भी कर जाता हूँ,
मोह से बुनकर रिश्तों को,
पक्का करता जाता हूँ,
धागा बन विश्वास का मैं,
दूरी हर इक मिटाता हूँ,
भाई के हाथ पे बंध के मैं,
बहना से प्यार बढ़ाता हूँ,
सच कहता हूं,
सच का भी बंधन मैं बन जाता हूँ,
प्रेम के रस में सन के मैं,
प्रभु को भी संग लिवा लाता हूँ।
Sunder pangtiyan God bless u💐💐💐💐💐
LikeLiked by 1 person
Dhnyawad Didi 🙏💐
LikeLike
मुझे आपकी इस क्षमता का भान नहीं था,
आपकी लेखन गुण का ज्ञान नहीं था ।
बहुत सुखद लगा पढ़कर !
ईश्वर आपकी कल्पना को और उडान दें,
अपनी ओर ले जाएं,
यही शुभकामना है ।
डॉ. नन्द किशोर
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ साहब 🙏💐
LikeLike
बहुत सुन्दर रचना
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद
LikeLike
Bahut sunder kavita
LikeLiked by 1 person
Dhanyawad Simran
LikeLike
धागे का बहुत बढ़िया काव्यात्मक वर्णन l आप अच्छा लिखते हैं l
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपके प्रेणादायक शब्दों के लिए🙏💐
LikeLike