आजाद होते हुए भी हम कहीं न कहीं से विदेशी संस्कृतियों के जाल में फंसे हुए हैं। वह हमारी पवित्र पुरातन संस्कृति को तेजी से अपना रहे हैं और हम उनकी। इस जाल को काटकर हमें मानसिक रूप से स्वतंत्र होना होगा।
तोड़ गुलामी की जंजीरें, आजादी की अलख जगाई, देश – कौम के मतवालों ने, अपनी – अपनी बली चढ़ाई, वर्तमान हम गौर से देखें, आजाद नहीं हैं आज भी हम, पाश्चात्य संस्कृति सर चढ़ बोले, अपना सब कुछ भूल गए हम, कभी हुआ करता था भारत, आज अभी से दो गुना, कितना कुछ छिन गया है हमसे, अब हो गया यह बौना, ज्ञान समस्त लेकर हमसे ही, पश्चिम आगे और बढ़ा, हमसे ही सब छीन- छान कर, उन्नति के शिखर पे जा चढ़ा, दे अपनी भौंडी असभ्यता, नव पीढ़ी को बर्बाद किया, संस्कृति सभ्यता ले भारत की, ह्रदय से अंगीकार किया, अब भी समय है चेत जाओ, तोड़ गुलामी की जंजीरें मन से, नवयुग का निर्माण करो, स्वयं को आजाद करो।।
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Nice
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बहुत ही बढ़िया।
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धन्यवाद 🙏🙏🌹💐🙏🙏
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सही कहा आपने।अपनी सुसंस्कृति को भूल विदेशी अपसंस्कृति के गुलाम हो गए हैं हम। इसका कोई समाधान भी नजर नही आता।
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यह तो तभी सम्भव है जब प्रकृति विनाश करके नव सृजन करे।
🙏🙏💐
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अपनी जड़ों से जुडे रहना बहुत आवश्यक है ,सुन्दर संदेश दिया आपने।
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जी…बहुत बहुत धन्यवाद 💐
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Nice poem..
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Thanks 🌹
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Nice
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Thanks
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