
यदि हम पिछली भूलों को स्मरण करते हुए वर्तमान को संवारने के प्रयत्न करें तो हमारा जीवन जीना सार्थक हो सकता है।
कभी जलाया गया
कभी दफनाया गया
कभी चील कौवों द्वारा
नोच – नोच के खाया गया
कभी न जाना न समझा
क्यों यह हुआ
कभी जने बच्चे बन के स्त्री
कभी बन पुरूष
वन – वन भटकता रहा
न जाने किन – किन रूपों में
किन – किन योनियों में आता रहा
मानव देह की प्रतीक्षा मैं करता रहा
चिर युगों पश्चात्
फिर से मिली है यह देह
मिलते ही पिछला सब विस्मृत हो गया
जन्म लेते ही चासनी बनी अहंकार की
आज तक उसी में मैं लिपटता रहा
जो अब भी न समझा अब भी न जाना
संग मेरे घटित हुआ है यह सब
कहीं अब भी यदि यह नहीं माना
तो फिर से यह क्रम चलता रहेगा
चलेगी चक्की समय की
मैं पिसता रहूँगा
फिर मिलेगी देह तो
किसी न किसी की
संघर्ष जीवन का फिर से होता रहेगा
कुछ पाऊँगा और कुछ खोता रहूँगा
फिर मिलेगी यह देह और मैं सोता रहूँगा
हे भगवन् कर दे वर्षा तूं अपनी कृपा की
दे उतार गन्दगी – चासनी यह मेरी
दे सद्बुद्धि हो जाए सद्गति मेरी
मिले सुमति – नष्ट हो यह कुमति मेरी
फिर न भुगतने पड़ें और दुष्परिणाम
खो जाऊं तुझमें ही भूल के स्वयं को
सदा लेता रहूँ मैं तुम्हारा ही नाम
सदा लेता रहूँ मैं तुम्हारा ही नाम।।
बहुत सुंदर रचना।
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बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान💐🙏
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Jeevan maran ka sunder chittran🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐
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🙏🙏🙏🙏🙏
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अति सुंदर रचना है आपकी. Really beautiful.
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धन्यवाद अपर्णा जी 🙏💐
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वाह!!! नजरायें हैं, कि हमें करना क्या।। उत्तम मार्गदर्शन। धन्यवाद आपका।👍💐
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पढ़ने, पसन्द करने और सराहना के लिए आपका दिल की गहराईयों से धन्यवाद
🌹
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