
मैं अंधेरी रातों में
चौराहे पर खड़ा सोचता रहता हूं
कि यह अंधेरे रास्ते
कहीं तो जाते होंगे,
आगे जाके न जाने कितने
मोहल्लों – गलियों और छोटे – छोटे
तंग रास्तों से जुड़ जाते होंगे,
उनके आगे न जाने कितने
मैदान – तालाब – नदियां
और पहाड़ आते होंगे,
कहीं तो आखिरी छोर होगा इनका,
आखिर यह कहां तक जाते होंगे,
न जाने कैसे कैसे लोगों से
यह टकराते होंगे,
हर किसी का वास्ता
तो इनसे पड़ता ही है,
क्योंकि हर एक इन्हीं से जुड़े
घरों में जन्मता है,
सोचता हूं हर एक
इस चौराहे तक तो आता ही होगा,
फिर दूजे रास्तों की खाक छानकर
अपने रास्तों पर लौट जाता होगा,
कुछ इस चौराहे को श्मशान
तो कुछ कब्रस्तान कहते हैं,
छोड़ने आते हैं औरों को
और लौट जाते हैं,
मैं अकेला खड़ा रह जाता हूं
यहां यह सोचकर,
आखिरकार तो यहां आना ही है,
यही तो है घर अपना
सही ठिकाना ही यह है,
क्यों मैं दौडूं शुरू से आखिर तक,
खींचूं लकीरें कि यह रास्ता है मेरा,
क्यों न बैठा रहूं यहां उसी की याद में,
आखिर इसी के ऊपर तो रहता है हमदम मेरा।।
Shaandaar soch ko pranaam…..bohat hi sunder rachna🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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🙏🌹🙏🌹🙏
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यथार्त।👌
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धन्यवाद तारा जी 🙏💐
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आभार।
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Outstanding poem. You are very talented. Wow! Keep up the good work. I liked your poem.
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it’s indeed a pleasure that you realy like and appreciate my posts…Here is much more poems about spirituality…I hope you will read and like…
🙏🙏🙏🙏🙏
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अति सुन्दर कविता। ✌️💐
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बहुत बहुत धन्यवाद 🙏💐
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