विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर Biodiverse Forest, Nalagarh में नालागढ़ साहित्य कला मंच के प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ IFS अधिकारी S. Yashudeep Singh जी के संरक्षण में कवि सम्मेलन में भाग लिया…प्रकृति मां की गोद में बैठ कर कविता पाठ करने में आनंद ही आनंद है…



ओ धरा क्यों सूख रही,
क्यों मानवता से रूठ रहीं,
कितनी हरियाली थी पहले,
जल ही जल था तेरे अंचल में,
धन धान्य कन्द और मूल भी थे,
क्या खूब रसीले फल फूल भी थे,
नदियां सूखीं – मिट रहे जलाशय,
ओ धरा बता – क्या तेरा आशय,
क्या कहूं पुत्र मैं हूं उदास,
अब नहीं रही मानव से आस,
लोलुपता इस पर छाई,
नहीं याद रही इसको माई,
मेरे तन को यह छील रहा,
वन पर्वत जलाशय खोद रहा,
ले खनिज मेरा – मुझे ही रौंद रहा,
कर आविष्कार नए नए आयुधों का,
मुझको पल पल ही फूंक रहा,
दो युद्ध किए बड़े भीषण ही,
तब से बिगड़ा मेरा संतुलन ही,
अब यदि तीसरा युद्ध किया,
समझो मुझको बर्बाद किया,
मेरी क्या गलती पुत्र बता,
क्यों रहे यह मानव मुझे सता,
मेरे पालन में क्या रही कमी,
हर मानव के मन है गमी,
ओ मां धरा – बड़ा अनर्थ हुआ,
समस्त विकास है व्यर्थ हुआ,
कुछ तो इसका भी हल होगा,
सब हो पहले सा हरा भरा,
कभी तो सुनहरा पल होगा,
अब भी यदि मानव ठान ले मन में,
मां को कोई कष्ट न दूंगा,
जल की एक भी बूंद को मैं,
यूंही व्यर्थ न होने दूंगा,
बावली कुंए करूंगा निर्मित,
हरियाली को करूंगा सिंचित,
पर्वत वन को कष्ट न होगा,
हर घर में – पथ में वृक्ष लगेगा,
मैदान बनेंगे फिर से वन,
महके चहकेंगे फिर जीवन – 2 ।।
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Happy environment day ! good writing !
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Thank you so much Man Kun 😊🙏
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