
सुख में अधिक विकार है
सुख से आता अहंकार है
सुख ही दुख का कारण है
दुख ही दुख का निवारण है
सुख में दुख है छिपा हुआ
दुख में सुख है छिपा हुआ
दोनों ही जल की लहरें हैं
हर पल दोनों के पहरे हैं
पहलू दोनों इक सिक्के के
दोनों सबके सिरहाने हैं
दोनों ज्वार और भाटा हैं
दोनों का गहरा नाता है
इक आता है इक जाता है
इक संग में दूजा लाता है
सुख दुख बिन रह न पाता है
दुख सुख बिन न रह पाता है
दोनों की मित्रता गहरी है
कालिमा ही फिर सुनहरी है
हम चाहें सुख ही आए
अरे यह विडम्बना कैसी है
यदि दुख में न विलाप करें
और सुख में न अहंकार करें
दोनों को सम कर जानें हम
दोनों को ही अपना लें हम
फिर सुख आए या दुख आए
दोनों में खुद को ढालें हम
दोनों में ही ढल जाएं हम।
Very beautiful poem. 🌹🌹♥️♥️
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Thank you very much Aparna Mam
🙏😊
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Very beautiful 🌸❤️
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Thanks a lot 🙏😊
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