
हे बाल गोपाल
हे दीन दयाल,
हे मनमोहन
हे मदन गोपाल,
घुंघराले कुंतल असंख
मस्तक सुशोभित मोरपंख,
नयन कमल
दिव्य अवलोकन
उन्नत ललाट
पर्यवलोकन,
दिव्य आलोकित प्रभामण्डल
सर्व सृष्टि समाहित महामण्डल,
वाणी मधुर बरसे अमृत
मन हों निर्मल हों आनंदित,
बंसी मधुर रखी अधर
सुन ध्यान रमैं हे अक्षधर,
मुस्कान मोहक अति मधुर
छाए बहार निस दिन प्रचुर,
ठुमकत चलैं घुंघरू बजैं
हतप्रभ तकैं गोकुल सजैं,
माता बिलोएं प्रेम से
मटकी का माखन अति प्रिय,
छवि मनोहर हे हरि
तुझमें ही मेरा दिल बसै।।